(एक)
कास के रेशमी फूलों को सहला रहा है
किशोर वय का सुकोमल हाथ
गूलर के पके हुये फलों को देख रही हैं
उफनते यौवन की रतनारी आँखें
(दो)
झील की सतह पर खिली है शुभ्र ज्योत्सना
तल में से झांक रहा है पूर्ण चन्द्र
तुम भी होते यदि साथ
यह रात हमारे लिये अविस्मरणीय होती प्रेम!
(तीन)
पीपल की डाल पर प्रेम मग्न पक्षी-युगल
हवायें सिहरा रहीं हैं तन-बदन
मन में कोई हूक-सी उठती है
बांध कर रख लूँ तुम्हें चाँदनी की डोर से
(चार)
केसर में नहाई है देह
कैर के फूलों का रंग लेपा है अधरों पर
कांटों में उलझा है आँचल
छुड़वा कर ले चलो साथ कहीं दूर मुझे
भोर का उजास होने के पहले ही
(पाँच)
शरद की चाँदनी में सीझ रही है
अँगीठी की धीमी आँच पर
गाय के दूध की सुमधुर खीर
बल बुध्दि वीर्य वर्धक
तुलसी-दल डाल दो तुम अपने हाथों से
(छह)
मोगरा महकता है सांसों में
हवायें बह रही हैं मलय-गंधी
स्वप्न-स्वप्न झरती है उत्कंठा
शरद में होना था दोनों को साथ-साथ
(सात)
कार्तिक-स्नान से लौट रही हैं स्त्रियाँ
मंदिर में गूंजने लगे आरती के स्वर
शरद के रंग में रंगा है ईश्वर भी
हरि यश में गाती है मिलन-गीत विरहिनी