Nightbreak

Taseer Gujral

Poetry

About The Author

Taseer Gujral

Taseer Gujral studied literature and received a doctorate on the feminist poems of Adrienne Rich. She is a poet, Editor and a Translator. Her published works appear in The Sunflower Collective, Coldnoon Diaries, Muse India, Kashmir Lit, Life and Legends, Open Road Review, E3W Literature, Destiny to Write anthologies and Indian Express....

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जब भी कभी तेरा नाम लिखा

Ravinder Kandari

ज़िम्मेदारियों भरा कभी कुछ लिखा नही मैंने,
पर जब भी कभी तेरा नाम लिखा,
कोरे कागज़ पर,
साँसे रोक इत्मीनान से,
क़लम चलाई है मैंने !

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भरपूर मनुष्य की तरह

Kailash Manhar

ख़ुद से बना रहे मेरा लगाव
स्वाभिमान के साथ
जन से बना रहे जुड़ाव
ईमानदारी से और
बना रहे सच्चाई का भाव
पारदर्शियतायुक्त मन में
बनी रहे हिम्मत
अन्याय के विरुद्ध बोलने की
शोषण की पोल खोलने की
न्याय के पक्ष में रहने की
झूठ को तनिक भी नहीं सहने की
आदत बनी रहे शब्द पर विश्वास की
सार्थकतापूर्ण आस की
फिर क्या फर्क़ पड़ता है कि तुम
कवि मानो या न मानो मुझे
अथवा बना रहूँ या नहीं मैं स्वयं भी
क्या इतना-सा ही काफ़ी नहीं
कविता के लिये
कि जिसे कवि कहा जाये वह
एक भरपूर मनुष्य की तरह जिये

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शरद: कुछ काव्य-चित्र

Kailash Manhar

(एक)
कास के रेशमी फूलों को सहला रहा है
किशोर वय का सुकोमल हाथ
गूलर के पके हुये फलों को देख रही हैं
उफनते यौवन की रतनारी आँखें
(दो)
झील की सतह पर खिली है शुभ्र ज्योत्सना
तल में से झांक रहा है पूर्ण चन्द्र
तुम भी होते यदि साथ
यह रात हमारे लिये अविस्मरणीय होती प्रेम!
(तीन)
पीपल की डाल पर प्रेम मग्न पक्षी-युगल
हवायें सिहरा रहीं हैं तन-बदन
मन में कोई हूक-सी उठती है
बांध कर रख लूँ तुम्हें चाँदनी की डोर से
(चार)
केसर में नहाई है देह
कैर के फूलों का रंग लेपा है अधरों पर
कांटों में उलझा है आँचल
छुड़वा कर ले चलो साथ कहीं दूर मुझे
भोर का उजास होने के पहले ही
(पाँच)
शरद की चाँदनी में सीझ रही है
अँगीठी की धीमी आँच पर
गाय के दूध की सुमधुर खीर
बल बुध्दि वीर्य वर्धक
तुलसी-दल डाल दो तुम अपने हाथों से
(छह)
मोगरा महकता है सांसों में
हवायें बह रही हैं मलय-गंधी
स्वप्न-स्वप्न झरती है उत्कंठा
शरद में होना था दोनों को साथ-साथ
(सात)
कार्तिक-स्नान से लौट रही हैं स्त्रियाँ
मंदिर में गूंजने लगे आरती के स्वर
शरद के रंग में रंगा है ईश्वर भी
हरि यश में गाती है मिलन-गीत विरहिनी

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