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Sarojini Naidu

Poetry

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Sarojini Naidu

Sarojini Naidu, original name Sarojini Chattopadhyay, (born February 13, 1879, Hyderabad, India—died March 2, 1949, Lucknow), was a political activist, feminist, poet, and the first Indian woman to be president of the Indian National Congress and to be appointed an Indian state governor. She was also called “the Nightingale...

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शरद: कुछ काव्य-चित्र

Kailash Manhar

(एक)
कास के रेशमी फूलों को सहला रहा है
किशोर वय का सुकोमल हाथ
गूलर के पके हुये फलों को देख रही हैं
उफनते यौवन की रतनारी आँखें
(दो)
झील की सतह पर खिली है शुभ्र ज्योत्सना
तल में से झांक रहा है पूर्ण चन्द्र
तुम भी होते यदि साथ
यह रात हमारे लिये अविस्मरणीय होती प्रेम!
(तीन)
पीपल की डाल पर प्रेम मग्न पक्षी-युगल
हवायें सिहरा रहीं हैं तन-बदन
मन में कोई हूक-सी उठती है
बांध कर रख लूँ तुम्हें चाँदनी की डोर से
(चार)
केसर में नहाई है देह
कैर के फूलों का रंग लेपा है अधरों पर
कांटों में उलझा है आँचल
छुड़वा कर ले चलो साथ कहीं दूर मुझे
भोर का उजास होने के पहले ही
(पाँच)
शरद की चाँदनी में सीझ रही है
अँगीठी की धीमी आँच पर
गाय के दूध की सुमधुर खीर
बल बुध्दि वीर्य वर्धक
तुलसी-दल डाल दो तुम अपने हाथों से
(छह)
मोगरा महकता है सांसों में
हवायें बह रही हैं मलय-गंधी
स्वप्न-स्वप्न झरती है उत्कंठा
शरद में होना था दोनों को साथ-साथ
(सात)
कार्तिक-स्नान से लौट रही हैं स्त्रियाँ
मंदिर में गूंजने लगे आरती के स्वर
शरद के रंग में रंगा है ईश्वर भी
हरि यश में गाती है मिलन-गीत विरहिनी

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विश्व सारा सो रहा है

Harivansh Rai Bachchan

हैं विचरते स्वप्न सुंदर,
किंतु इनका संग तजकर,
व्योम–व्यापी शून्यता का कौन साथी हो रहा है?
विश्व सारा सो रहा है!
भूमि पर सर सरित् निर्झर,
किंतु इनसे दूर जाकर,
कौन अपने घाव अंबर की नदी में धो रहा है?
विश्व सारा सो रहा है!
न्याय–न्यायधीश भू पर,
पास, पर, इनके न जाकर,
कौन तारों की सभा में दुःख अपना रो रहा है?
बिश्व सारा सो रहा है!

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चाँदी की उर्वशी

Ramavtar Tyagi

चाँदी की उर्वशी न कर दे युग के तप संयम को खंडित
भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।
मैं मर जाता अगर रात भी मिलती नहीं सुबह को खोकर
जीवन का जीना भी क्या है, गीतों का शरणागत होकर,
मन है राजरोग का रोगी, आशा है शव की परिणीता
डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा ॥
सपनों का अपराध नहीं है, मन को ही भा गयी उदासी
ज्यादा देर किसी नगरी में रुकते नहीं संत सन्यासी
जो कुछ भी माँगोगे दूँगा ये सपने तो परमहंस हैं
मुझको नंगे पाँव धार पर आँखें मूँद भागना होगा ॥
गागर क्या है - कंठ लगाकर जल को रोक लिया माटी ने
जीवन क्या है - जैसे स्वर को वापिस भेज दिया घाटी ने,
गीतों का दर्पण छोटा है जीवन का आकार बड़ा है
जीवन की खातिर गीतों को अब विस्तार माँगना होगा ॥
चुनना है बस दर्द सुदामा लड़ना है अन्याय कंस से
जीवन मरणासन्न पड़ा है, लालच के विष भरे दंश से
गीता में जो सत्य लिखा है, वह भी पूरा सत्य नहीं है
चिन्तन की लछ्मन रेखा को थोड़ा आज लाँघना होगा ॥

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In The Forest

Sarojini Naidu

Here, O my heart, let us burn the dear dreams that are dead,
Here in this wood let us fashion a funeral pyre
Of fallen white petals and leaves that are mellow and red,
Here let us burn them in noon's flaming torches of fire.
We are weary, my heart, we are weary, so long we have borne
The heavy loved burden of dreams that are dead, let us rest,
Let us scatter their ashes away, for a while let us mourn;
We will rest, O my heart, till the shadows are gray in the west.
But soon we must rise, O my heart, we must wander again
Into the war of the world and the strife of the throng;
Let us rise, O my heart, let us gather the dreams that remain,
We will conquer the sorrow of life with the sorrow of song.

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